सुकमा/दोरनापाल (छत्तीसगढ़).बस्तर में नक्सलियों से घिरे 200 जवानों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। तीन जवान शहीद हो गए हैं। 17 घायल हैं। 12 की हालत गंभीर है। ये जवान बस्तर के डब्बामरका में तीन तरफ से घिर गए थे। यहां गुरुवार सुबह से एनकाउंटर चल रहा था। कई जवान खून से लथपथ थे, फिर भी मुस्कुराते हौसले के साथ 26 घंटे नक्सलियों से लड़ते रहे।
- इस पर स्पेशल डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने प्रमुख सचिव गृह सुब्रमणियम और उनके बाद बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी से बात की।
- तीनों अफसराें के बीच देर रात तक योजना बनती रही। आखिर में तय किया गया कि फोर्स जहां है, वहीं ठहर जाए।
- रात में चलना यानी नक्सली जाल में फंसकर बड़े नुकसान को बुलावा देना है। उसके बाद ही फोर्स को वहीं डब्बामरका के पास रूकने का संदेश दिया गया।
- स्पेशल डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने कहा नक्सलियों ने तगड़ी प्लानिंग के साथ एंबुश लगाया था। जवानों का हौसला ही है कि वे इतने बड़े एंबुश से निकलकर बाहर गए।
- नक्सलियों के बीच फंसे करीब डेढ़ सौ से ज्यादा जवानों को निकालने के लिए शुक्रवार सबुह ऑपरेशन शुरू किया गया।
- रेस्क्यू ऑपरेशन में सात सौ से ज्यादा जवान शामिल थे। इस टीम का सामना नक्सलियों की तीन अलग-अलग मिलिट्री कंपनी से हुआ था। इसमें तीन सौ से ज्यादा हथियारबंद नक्सली थे।
- जवानों ने बताया, ''नक्सलियों के एंबुश में फंसकर हमारे तीन जवान शहीद हो चुके थे। कुछ घायल थे। सबको लेकर फायरिंग करते हुए किस्टाराम की ओर बढ़ रहे थे। गोलियों की बौछार के बीच जवाबी हमला करते हुए सात किमी चले।''
- घायल पुलिस सब इंस्पेक्टर पाेदांबर ने बताया, ''डब्बामरका पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया। सीआरपीएफ के कमांडर पीएस यादव ने फोर्स को घेरा बनाकर और पोजीशन लेकर वहीं रुकने के लिए कहा।''
- ''वे सेटेलाइट फोन से पुलिस और सीआरपीएफ अफसरों से लगातार संपर्क करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन सिग्नल कमजोर था।''
- ''कई बार कॉल किया, तब सबको उन्होंने मैसेज दिया...रात यहीं रुकना है।''
- ''इसके बाद सारे लोग घायलों के साथ पोजीशन लेकर घुप अंधेरे में चुपचाप लेटे रहे।''
- ''वहां माचिस की एक तीली सबको मौत के मुंह में डाल सकती थी। सुबह बैकअप फोर्स आई, तब सबने पोजीशन बदली।''
- घायल पुलिस सब इंस्पेक्टर पाेदांबर ने बताया, ''डब्बामरका पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया। सीआरपीएफ के कमांडर पीएस यादव ने फोर्स को घेरा बनाकर और पोजीशन लेकर वहीं रुकने के लिए कहा।''
- ''वे सेटेलाइट फोन से पुलिस और सीआरपीएफ अफसरों से लगातार संपर्क करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन सिग्नल कमजोर था।''
- ''कई बार कॉल किया, तब सबको उन्होंने मैसेज दिया...रात यहीं रुकना है।''
- ''इसके बाद सारे लोग घायलों के साथ पोजीशन लेकर घुप अंधेरे में चुपचाप लेटे रहे।''
- ''वहां माचिस की एक तीली सबको मौत के मुंह में डाल सकती थी। सुबह बैकअप फोर्स आई, तब सबने पोजीशन बदली।''
हम नक्सलियों के हेडक्वार्टर में घुस रहे थे
- घायल सब इंस्पेक्टर पोदांबर ने बताया- ''हमारा ऑपरेशन 1 मार्च को सुबह किस्टाराम से शुरू हुआ। पहली बार उस इलाके में घुस रहे थे जो पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में माना जाता है। हम गोलापल्ली के उस इलाके की ओर बढ़ रहे थे, जो नक्सलियों का हेडक्वार्टर माना जाता है।''
- ''हमें मालूम था कि हमला होगा। हम हर स्थिति से निपटने को तैयार थे। पांच दिन का राशन हमारे साथ था। दो दिन जंगल में सर्चिंग करने के बाद 3 मार्च को किस्टाराम से 14 किमी आगे बढ़े और एंबुश में फंसे।''
- ''फायरिंग शुरू हुई लेकिन पर घायलों ने भी हौसला नहीं खोया। हमारा ऑपरेशन सफल रहा। हम वहां घुस गए, जहां अब तक नक्सलियों की हुकूमत मानी जाती थी।''
- ''हमें मालूम था कि हमला होगा। हम हर स्थिति से निपटने को तैयार थे। पांच दिन का राशन हमारे साथ था। दो दिन जंगल में सर्चिंग करने के बाद 3 मार्च को किस्टाराम से 14 किमी आगे बढ़े और एंबुश में फंसे।''
- ''फायरिंग शुरू हुई लेकिन पर घायलों ने भी हौसला नहीं खोया। हमारा ऑपरेशन सफल रहा। हम वहां घुस गए, जहां अब तक नक्सलियों की हुकूमत मानी जाती थी।''
कब से चल रहा था एनकाउंटर?
- एक मार्च को सीआरपीएफ 208 और डीआरजी के जवानों की ज्वाइंट टीम किस्टारम से ऑपरेशन पर निकली थी।
- गुरुवार सुबह 10 बजे के करीब जवान डब्बामरका गांव के पास पहुंचे। यहां नक्सलियों ने जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी।
- करीब 20 से ज्यादा जवान घायल हो गए थे। इनमें घायल फत्ते सिंह, एनएस लांजु और लक्ष्मण कुर्ती ने समय पर इलाज नहीं मिल पाने की वजह से दम तोड़ दिया।
- एनकाउंटर में दस से ज्यादा नक्सली मारे गए। नक्सली अपने साथियों के शव उठाकर ले गए।
- जवानों ने बताया- गुरुवार शाम हेडक्वार्टर को बताया गया कि दो जवान शहीद हुए हैं। बाकी सब सुरक्षित हैं।
- रात होते-होते पता चला कि दो सौ जवानों की पूरी कोबरा बटालियन ही फंस चुकी है।
- गुरुवार सुबह 10 बजे के करीब जवान डब्बामरका गांव के पास पहुंचे। यहां नक्सलियों ने जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी।
- करीब 20 से ज्यादा जवान घायल हो गए थे। इनमें घायल फत्ते सिंह, एनएस लांजु और लक्ष्मण कुर्ती ने समय पर इलाज नहीं मिल पाने की वजह से दम तोड़ दिया।
- एनकाउंटर में दस से ज्यादा नक्सली मारे गए। नक्सली अपने साथियों के शव उठाकर ले गए।
- जवानों ने बताया- गुरुवार शाम हेडक्वार्टर को बताया गया कि दो जवान शहीद हुए हैं। बाकी सब सुरक्षित हैं।
- रात होते-होते पता चला कि दो सौ जवानों की पूरी कोबरा बटालियन ही फंस चुकी है।
जवानों के हौसले की तारीफ...
- इस पर स्पेशल डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने प्रमुख सचिव गृह सुब्रमणियम और उनके बाद बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी से बात की।
- तीनों अफसराें के बीच देर रात तक योजना बनती रही। आखिर में तय किया गया कि फोर्स जहां है, वहीं ठहर जाए।
- रात में चलना यानी नक्सली जाल में फंसकर बड़े नुकसान को बुलावा देना है। उसके बाद ही फोर्स को वहीं डब्बामरका के पास रूकने का संदेश दिया गया।
- स्पेशल डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने कहा नक्सलियों ने तगड़ी प्लानिंग के साथ एंबुश लगाया था। जवानों का हौसला ही है कि वे इतने बड़े एंबुश से निकलकर बाहर गए।
- नक्सलियों के बीच फंसे करीब डेढ़ सौ से ज्यादा जवानों को निकालने के लिए शुक्रवार सबुह ऑपरेशन शुरू किया गया।
- रेस्क्यू ऑपरेशन में सात सौ से ज्यादा जवान शामिल थे। इस टीम का सामना नक्सलियों की तीन अलग-अलग मिलिट्री कंपनी से हुआ था। इसमें तीन सौ से ज्यादा हथियारबंद नक्सली थे।
Source: Dainik Bhaskar

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