बिहार के ये चर्चित IPS अब एनएसजी में संभालेंगे अहम जिम्मेदारी

The position of the IPS officer and do not need to talk about what it means but some style to IPS different identity is such that people and government administration, yes we are talking of Bihar cadre a fast-paced and senior IPS officer shalin who went the greatest responsibility for the safety of the country.

नई दिल्ली: IPS अधिकारी का ओहदा और उसके महत्व के बारे में बताने की ज़रुरत नहीं हैं लेकिन कुछ आईपीएस अधिकारियों की कार्यशैली ऐसी होती है जो लोगों और शासन प्रशासन में अलग ही पहचान बना देते हैं, जी हां हम बात कर रहे हैं बिहार कैडर के एक तेज-तर्रार और सीनियर आईपीएस अधिकारी शालिन की जिन्हें देश की सुरक्षा से संबंधित बड़ी जिम्मेवारी दी गई है.
गृह मंत्रालय के निर्णय के बाद राज्य सरकार ने सेंट्रल रेंज (पटना) के डीआईजी शालीन को विरमित कर दिया है. 5 वर्षों तक वे एनएसजी (नई दिल्ली) में डीआईजी की जिम्मेवारी संभालेंगे.
शालीन प्रधानमंत्री के सुरक्षा दस्ता एसपीजी में रह चुके हैं
गौरतलब है कि 2001 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अफसर शालीन वर्ष 2008 से 2014 तक प्रधानमंत्री के सुरक्षा दस्ता एसपीजी में रह चुके हैं. इस दौरान वे दो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (पूर्व) पीएम नरेंद्र मोदी के आंतरिक सुरक्षा घेरे के इंचार्ज थे. उन्हें एसपीजी के तेजतर्रार अधिकारियों में गिना जाता था. 
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एसपीजी से वापस बिहार आने के बाद पहले उन्हें गया के डीआईजी फिर पटना के सेंट्रल रेंज की जिम्मेवारी मिली थी.
शालिन का काम करने का अंदाज़ है जुदा
शालिन की पहचान पटना की ट्रैफिक अभियान को दुरुस्त करने वाले अधिकारी के रूप में भी होती है. राजधानी के ट्रैफिक व्यवस्था की कमान संभालते हुए उन्होंने सड़कों पर पुलिसिया घेराबंदी कर लहरिया बाइकर्स को खदेड़ा तो बिना हेलमेट बाइक ड्राइविंग पर रोक लगाई.
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बतौर पटना रेंज डीआईजी शालिन ने पटना समेत आसपास के इलाकों में बिल्डिंग निर्माण से जुड़े माफियाओं के खिलाफ शालिन ने शिकंजा कसा तो कईयों पर कार्रवाई भी की. पटना में फ्लैट के नाम पर जालसाजी करने वाले बिल्डरों के खिलाफ भी उन्होंने मुहिम छेड़ी. 
कई पुलिसकर्मियों को एक साथ लाईन हाजिर कर दिया था
पटना पुलिस पर पैसे लेकर शराब माफियाओं को छोड़ने के आरोप लगे तो मामले में बड़ी कार्रवाई की. इसी साल के फरवरी महीने सेंट्रल रेंज के डीआईजी शालीन ने माफियाओं को पैसे लेकर छोड़ने के मामले में पूरे थाने को आरोपी मानते हुए सभी पुलिसकर्मियों को एक साथ लाईन हाजिर कर दिया था. 
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इसी साल मकर संक्रांति के दिन पटना में हुए नाव हादसे जिसमें करीब दो दर्जन लोगों की मौत हो गई थी की जांच का जिम्मा भी शालिन को मिला था. टीम मे शालिन समेत अन्य अफसर भी शामिल थे जिन्होंने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिसके आलोक में अधिकारियों पर कार्रवाई की गई थी.
लिखा था लेख जिसकी हुई थी खासी चर्चा-
'मैं तो एक 'बेकार' पंजाबी मुंडा था, 'बिहारी गैंग' ने डूबने से बचाया'
बिहार का अतीत काफी सुनहरा रहा है, वर्तमान में कुछ लोगों की वजह से बिहार के बाहर बिहारियों के प्रति लोगों की धारण बदल गई थी. लेकिन बिहार कैडर के एक IPS अधिकारी के इस लेख ने फिर से बिहारियों प्रति लोगों की धारना को बदलने को मजबूर कर दिया.
गुरु गोविंद सिंह के जयंती पर पटना 350वें प्रकाशोत्सव का आयोजन हुआ था. इस आयोजन के दौरान ब्रांड बिहार की झलक पूरी दुनिया ने देखी है. पंजाब से आने वाले लोग बिहार के लोगों को सलाम कर रहे थे. व्यवस्था देख सब लोग एक सुर-सुर में वाह-वाह कर रहे थे. इसी फीलिंग को पटना के डीआईजी शालीन ने अपने लेख के माध्यम से की है. शालीन मूलत: पंजाब के रहने वाले हैं. 
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शालीन ने लिखा है कि 'प्रकाश पर्व' जिसमें विश्व के कोने-कोने से सिख समुदाय हफ्ते तक पटना के आगंतुक रहे, इसके सफलता पूर्वक समापन के बाद, एक पंजाबी और साथ-साथ बिहार क़ैडर के पुलिस अफ़सर होने के कारण अपनी व्यक्तिगत और प्रोफ़ेशनल ख़ुशी दोनों को रोक नहीं पा रहा. भावनाएं बह रही है. ह्रदय से पूरे बिहार को नमन कर रहा हूं. 
बात बीस साल पहले की है. आईआईटी रूड़की के विद्यार्थी के रूप में फ़ाइनल ईयर में 'बिहारी गैंग' से परिचय हुआ. उसके पहले दिल्ली, कानपुर, लखनऊ इत्यादि के दोस्तों से उनके अलग-अलग प्रतिभा से अवगत हो चुका था. किसी ग्रुप में खेल कूद में ख़ुद को कमज़ोर पाया तो कहीं ख़ुद के अंदर अमेरिका जाने की ज्वाला कम पाया. जीवन में एक नीरसता थी, ना तो किसी स्पोर्ट्स क्लब का मेंबर ना ही कोई ड्रामा सोसाइटी में दिलचस्पी. पढ़ाई भी सुभानअल्लाह थी. इसी उधेड़बुन में मैं 'बिहारी गैंग' में शामिल हुआ. शायद, मुझे स्वीकार करना बिहार के स्वभाव में था.
याद रहे, बिहार का छठ पर्व पूरे विश्व में अकेला पर्व है जहां डूबते सूर्य को भी पूजा जाता है और मैं अपनी और कैम्पस की नज़र में एक डूबता सूर्य ही था. फिर बिहार के उस ग्रुप को बाक़ी के बचे दिनों में बहुत एंज्वाय किया. 
पास करने के बाद मैं एक मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में एक साल के लिए नौकरी किया लेकिन मेरे 'बिहारी गैंग' के दोस्त कैम्पस में मिली अपनी-अपनी नौकरी छोड़ भारत प्रसिद्ध 'जिया सराय' पहुंच सिविल सर्विसेज़ की तैयारी को पहुंच चुके थे. मुझे वहां देख सभी ना सिर्फ़ प्रसन्न हुए बल्कि पूरे दिल से पुनः स्वागत किया. कहते हैं कि सिविल सर्विसेज़ के लिए कड़ी मेहनत, ज़बरदस्त इरादा इत्यादि इत्यादि होना चाहिए और मैं वो सारे गुण आईआईटी रूड़की के कैम्पस में खो चुका था.
कई बार हताशा के दौर में जिया सराय के उन बंद कमरों में  न घबराता था, तब सामने आते थे वही बिहारी गैंग के दोस्त. मेरा दोस्त राघवेंद्र नाथ झा जो मुझे हर पल मेरी मंज़िल की ओर मुझे इशारा करता और उस मंज़िल को पाने का बुलंद हौसला उन्हीं दोस्तों से मिलता था. कैसे भूल सकता हूं उस दौर को जिसका हर पल आज के मेरे वर्तमान में शामिल है. 
मेरा सेलेक्शन IPS में हो गया और नसीब देखिए, मुझे बिहार क़ैड़र ही मिला. वर्षों यहां काम करने के बाद मुझे पता चला कि जैसे आप एक 'निर्भया' के चलते पूरे उत्तर भारतीय पुरुषों को ग़लत नहीं कह सकते , 'कावेरी' के चलते सभी बेंगलुरु वालों को बस जलाने वाला नहीं कह सकते, ठीक उसी तरह बिहार में कुछ अपराधों के चलते सभी बिहारी को उसी रंग में रंग नहीं सकते. 
यह मेरा पुरज़ोर मानना है की औसत बिहारी की 'इंटेलेक्ट' सामान्य लोगों से ज़्यादा होती है  बिहारी स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं . हां, बिहारी जातिवाद को लेकर एक ज़िद में होते हैं और इंसान के गुण- अवगुण जाति आधारित करते हैं जो कई बार हम जैसों को ताज्जुब भी कर जाता है लेकिन शायद यह जातिवाद ही है जो उनके अन्दर बिहारीवाद की जगह भारतीयता भरता है क्योंकि बिहार छोड़ते ही उनका जातिवाद भी ख़त्म हो जाता है. 
बिहार के बाहर बिहारी विश्व के किसी भी कोने में वहां की सभ्यता और संस्कृति को बड़े ही आदर से स्वीकार करते हैं, चाहे वो आईआईटी का कैम्पस हो या चेन्नई या बंगलोर, उस ख़ास ग़ैर बिहार को अपना जगह मानने लगते हैं. अपनी बोली को बरक़रार रखते हुए उस ग़ैर बिहार मिट्टी में ख़ुद को समा देते हैं. कई बार ग़ैर बिहारी बिहारियों के इस जज़्बे को सलाम नहीं कर पाते. करना चाहिए, तब जब वह बिहारी पटना / भागलपुर के विकास को दरकिनार कर आपके शहर के विकास में लगा हुआ है. 
बिहारी में 'कलेजा' बहुत होता है, कुछ खोने का भय नहीं होता . एक उदाहरण देता हूं, मेरे बैच के दूसरे IPS नजमल होदा ट्रेनिंग के दौरान सीनियर अफ़सर से ऐसे ऐसे सवाल पूछते की वहीं उनके साथ बैठा मैं हैरान हो जाता. क्या कोई ऐसे सवाल भी पूछ सकता है. कुछ ऐसा ही यहां के पत्रकारों के साथ भी है. आप प्रेस कॉफ्रेंस में हैं और अचानक से आपका पत्रकार दोस्त जो थोड़ी देर पहले आपके साथ चाय पी रहा था, आप पर ही सवालों की लड़ी / झड़ी लगा देगा. आपको बख्शने के मूड में नहीं होगा. 
यूं ही मजाक के तौर पर नौकरी के शुरूआती दौर में जब कभी अपने IPS दोस्तों को फोन करता तो उधर से जबाब आता था, 'साहेब, अभी खाना खा रहे हैं या 'नहा' रहे हैं'. बिहारी भाई लोग नहाने और खाने में बहुत समय लेते हैं. पहले तो मै आश्चर्य में रहता था अब समझ चूका हूं. 
हां, बिहार और बिहारी अपनी कुछ समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन भारतीयता में कभी कोई कमी नहीं है. विशाल हृदय में हर किसी के लिए जगह है तभी तो मेरे जैसा एक पंजाबी भी यहां बड़े ठाठ आपके ह्रदय में बैठा है. गुरु गोविंद सिंह महाराज के 350 वां जन्म समारोह को बिहारी समुदाय दिल से मना कर पूरे विश्व के पंजाबी बिरादरी को चकित कर सबके चेहरे पर एक मुस्कान ला दिया. 
source zee news

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